Sunday 29 December 2013

कोहरे को हराती धूप

कोहरे से छन छन  के आती धूप
ये एहसास दिलाती है
कि शाम कितनी ही गहरी क्यों  न हो
सुबह सुनहरी रोशनी लाती है

कोई साथ हो न हो तुम्हारे
ये अपनेपन की  गर्माहट तुम्हारी है
नए दिन का सूरज
ये सर्दियों की  सुगबुगाहट तुम्हारी है

चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार का ज़ायका  तुम्हारा है
जो पाया है अपनी मेहनत से
और जो पाने कि आशा है
वो सब तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा है

कोहरे को हराती धूप
ये एहसास दिलाती है
कि शाम कितनी ही गहरी क्यों न हो
सुबह सुनहरी रोशनी लाती है


 

1 comment:

  1. This is beautiful Maulshree!
    Amazing, very romantic and expressive!
    This is my first time reading your blog... Certainly not the last. Wo go through more content for sure. Good luck kiddo ��

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